Saturday 22 January 2011

मेरी माँ की कविता

     1   मृत्यु का समय 


न जाने किस समय प्रहर मै तन का पिजरा टूटेगा 
सुबह शाम या अर्ध रात्रि मै चेतन बहार निकसेगा...

मन होगा स्तब्ध मोन, और तन भी कुछ न बोलेगा 
बस लेखा जोखा कर्मो का चेतन के संग हो जायेगा 

भटकन मृगमरीचिका की, यादो से अंतर अज्ञान कचोटेगा
जिसको अपना जाना माना ,वह सभी जुदा यह दिखेगा 

जीवन बेबस निस्सार गया, इस अनहोनी पर रोयेगा 
पनघट से खाली गागर को ले जाते यह पछतायेगा....

                                 
रंग बिरंगे खेल खिलोनो से बचपन सुखमय पाया 
रूप सोंदर्य अस्थिर योवन का मन को बहुत बहुत भाया

फिर आघात प्रतिघात अपनों का इससे ह्रदय झुलसाया 
याद स्वं की आती केसे ... इस सबसे जीवन घिरा रहा

संघर्षो से ही कुछ सत्य को जाना यही कुछ दे पायेगा 
अंत समय मै यही जुदामन  संतुष्ट  यही ले जायेगा


न जाने किस समय प्रहर मै तन का पिजरा टूटेगा 
सुबह शाम या अर्ध रात्रि मै चेतन बहार निकसेगा...
                                         -- श्रीमती इंदिरा जैन  

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